भजन संहिता 127

1 यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनाने वालों को परिश्रम व्यर्थ होगा। यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा।

2 तुम जो सवेरे उठते और देर करके विश्राम करते और दु:ख भरी रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिये व्यर्थ ही है; क्योंकि वह अपने प्रियों को यों ही नींद दान करता है॥

3 देखे, लड़के यहोवा के दिए हुए भाग हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है।

4 जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं।

5 क्या ही धन्य है वह पुरूष जिसने अपने तर्कश को उन से भर लिया हो! वह फाटक के पास शत्रुओं से बातें करते संकोच न करेगा॥

1 A Song of degrees for Solomon.

2 Except the Lord build the house, they labour in vain that build it: except the Lord keep the city, the watchman waketh but in vain.

3 It is vain for you to rise up early, to sit up late, to eat the bread of sorrows: for so he giveth his beloved sleep.

4 Lo, children are an heritage of the Lord: and the fruit of the womb is his reward.

5 As arrows are in the hand of a mighty man; so are children of the youth.

6 Happy is the man that hath his quiver full of them: they shall not be ashamed, but they shall speak with the enemies in the gate.