भजन संहिता 112:1
याह की स्तुति करो। क्या ही धन्य है वह पुरूष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्न रहता है!
Praise | הַ֥לְלוּ | hallû | HAHL-loo |
ye the Lord. | יָ֨הּ׀ | yāh | ya |
Blessed | אַשְׁרֵי | ʾašrê | ash-RAY |
is the man | אִ֭ישׁ | ʾîš | eesh |
feareth that | יָרֵ֣א | yārēʾ | ya-RAY |
אֶת | ʾet | et | |
the Lord, | יְהוָ֑ה | yĕhwâ | yeh-VA |
delighteth that | בְּ֝מִצְוֹתָ֗יו | bĕmiṣwōtāyw | BEH-mee-ts-oh-TAV |
greatly | חָפֵ֥ץ | ḥāpēṣ | ha-FAYTS |
in his commandments. | מְאֹֽד׃ | mĕʾōd | meh-ODE |